हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह का 87 साल की उम्र में लंबी बीमारी से जूझने के बाद निधन हो गया। वीरभद्र सिंह नौ बार विधायक रहे। साथ ही वह पांच बार सांसद भी चुने गए। उन्होंने छह बार सीएम के रूप में राज्य की बागडोर भी संभाली।
आईसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे
अस्पताल में वीरभद्र सिंह की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी। इस वजह से उन्हें आईसीयू में शिफ्ट किया गया था। वीरभद्र सिंह यहां वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे।इससे पहले IGMC के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. जनक राज ने बुधवार को कहा था कि सिंह की हालत गंभीर है लेकिन वह स्थिर बनी हुई है।
नौ बार विधायक और 5 बार रहे सांसद
वीरभद्र सिंह छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे हैं। वीरभद्र सिंह यूपीए सरकार में भी केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। उनके पास केंद्रीय इस्पात मंत्रालय रहा। इसके अलावा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय भी रह चुका है। वीरभद्र सिंह का जन्म 23 जून, 1934 को बुशहर रियासत के राजा पदम सिंह के घर में हुआ।
वीरभद्र सिंह ने 1962 में, वर्ष 1983 से 1990, 1993 से 1998, 1998 में कुछ दिन तक तीसरी बार, फिर 2003 से 2007 और 2012 से 2017 में हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे। लोकसभा के लिए वह पहली बार 1962 में चुने गए।
उन्होंने पहली बार महासू लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। पंडित जवाहर लाल नेहरू उन्हें राजनीति में लाए थे। इस बात को वीरभद्र सिंह बार-बार दोहराते थे। लोकसभा के लिए वीरभद्र सिंह 1962, 1967, 1971, 1980 और 2009 में चुने गए। वर्तमान में वीरभद्र सिंह अर्की से विधायक थे। इंदिरा गांधी की सरकार में वीरभद्र सिंह दिसंबर 1976 से 1977 तक केंद्रीय पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री रहे। दूसरी बार भी वह इंदिरा सरकार में ही वर्ष 1982 से 1983 तक केंद्रीय उद्योग राज्यमंत्री रहे।
इसके बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री ठाकुर राम लाल की जगह मुख्यमंत्री की कमान संभाली। उसके बाद से राज्य की राजनीति में सक्रिय हुए।
फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व की केंद्र की यूपीए सरकार में वीरभद्र सिंह 28 मई 2009 से लेकर 18 जनवरी 2011 तक कैबिनेट मंत्री रहे। उनके पास पहले इस्पात मंत्रालय रहा। उसके बाद उन्हें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय दिया गया।
वीरभद्र सिंह परंपरागत सीट रोहड़ू से विधानसभा चुनाव लड़ते थे। अपने घर रामपुर की सीट के अनारक्षित होने के कारण वह कभी भी यहां से चुनाव नहीं लड़ पाए। पुनर्सीमांकन के चलते रोहड़ू सीट भी आरक्षित हुई तो 2012 में उन्होंने शिमला ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ा। 2017 में उन्होंने यह सीट अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह के लिए सीट छोड़ दी और खुद अर्की से चुनाव लड़े।