हिमाचल प्रदेश की संस्कृति वहुत प्रसिद्ध है,वरसात के दिनों में सावन महीने के अंत के बाद जब भाद्रपद महिना शुरू होता है तो रीति-रिवाजों के अनुसार सभी नवविवाहित लड़कियां अपने मायके आती हैं। इस महीने को हिमाचल में “काला महीना” भी कहते हैं। लोगों की मान्यता होती है कि इस महीने में नवविवाहित बहू और सास को एक घर में रात नहीं गुजारनी चाहिए। ऐसा करने से सास या वहु को नुकसान हो सकता है।
सावन साजन संग गुजारने के बाद हिमाचल की नई नवेली दुल्हनें काला महीना गुजारने अपने मायके जाने को तैयार हैं।रीति रिवाजों के मुताबिक इन दिनों में सास-बहू और दामाद-सास का एक दूसरे का देखना वर्जित होता है। इस रिवाज का अभी भी पूरे चाव से पालन होता है।
उधर बिटिया के घर आने की ख़ुशी में उसके अम्मा बापू भी घर की चौखट पर खड़े उसका इंतजार कर रहे हैं। इस पहाड़ी प्रथा के अनुसार काला महीना गुजारने को नवविवाहिता को पूरी तैयारी के साथ भेजा जाता है। एक दिन पहले ही पकवान बना दिए जाते हैं।एक बड़े टोकरे में इन पकवानों भर कर दुल्हन के साथ मायके छोड़ कर आते हैं। दुल्हनों को इतनी लंबी छुट्टी शादी के बाद पहली बार यह ही मिलती है। सावन के ख़त्म होने और भाद्रपद के आगाज के साथ ही काला महीना शुरू हो जाता है।
पुराने जमाने में जब काला महीना आता था तो उस महीने को तेहरवां महीना माना जाता था अधिकतर लोगों के घरों में इन दिनों अनाज की कमी रहती थी और कमाई का साधन व काम धंधा भी शून्य के बराबर होता था।तो नई नबेली दुल्हन को किसी चीज की कमी का अहसास न हो तो ससुराल पक्ष अपनी गरीबी छुपाने को उसे उसके मायके भेज देते थे वहीं दामाद को भी इसलिय उसकी सास से नहीं मिलने देते थे कि कहीं उनकी बेटी दामाद के सामने अपने ससुराल की बुराई ओर कमियां न निकाल सके।
अब इसे एक अंधविश्वास कहें या फिर एक बहाना या कुछ और। लेकिन इसी बहाने नवविवाहित लड़की अपने मायके में पूरा एक महीना बिता पातीं हैं। इस पूरे महीने वे अपने मायके में रहतीं हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं, हाथों में मेहंदी रचाती हैं। अगले यानी आश्विन महीने को सक्रांति के बाद ही नवविवाहिता अपने ससुराल जाती हैं। कईं बार काला महीना खत्म होते ही श्राद्ध शुरू हो जाते हैं तो उनको मायके में और समय मिल जाता है और फिर नवरात्रि में वापिस जाती हैं।
जब भी नवविवाहिता वापिस अपने ससुराल जाती हैं तो माँ उनको ससुराल वालों के लिए कपड़े, मिठाई और पकवान बनाकर भिजवाती हैं। जितने दिन वे मायके में रहतीं हैं वापिस अपने अल्हड़पन में पहुंच जातीं हैं लेकिन वापिस ससुराल जाते ही एक बार फिर एक जिम्मेदार बहू के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाने में जुट जातीं हैं। इस तरह हर नवविवाहिता इस महीने का इंतजार करती है ताकि वे अपने मायके जा सके।
इसके साथ ही कहा जाता है इस महीने में रातें काली होतीं हैं । इसके पीछे की मान्यता यह है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी महीने में काली रातों में हुआ था और रात को उजाला करने के लिए ही दिए जलाए जाते हैं।