Holi 2022 Date: वसंत ऋतु में फाल्गुन पूर्णिमा (Falgun Purnima) के दिन मनाया जाने वाला यह एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। दरअसल यह रंगों का त्योहार है। यह त्योहार पारंपरिक रूप से दो दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और दूसरे दिन रंग खेला जाता है।
होली 2022 मुहूर्त:
हिंदू पंचांग की गणना के अनुसार होलिका दहन 17 मार्च गुरुवार के दिन होगा। रंगों की होली 18 मार्च शुक्रवार को खेली जाएगी। इस साल फाल्गुन पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 17 मार्च को दोपहर 01 बजकर 30 मिनट पर होगा। पूर्णिमा तिथि 18 मार्च को दोपहर 12 बजकर 48 मिनट पर समाप्त होगी।
शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurta) – फाल्गुन पूर्णिमा 2022
पूर्णिमा तिथि (Purnima Tithi) प्रारंभ – 17 मार्च 2022 13:30
पूर्णिमा तिथि (Purnima Tithi) समाप्त – 18 मार्च, 2022 को 12:48
होलिका दहन मार्च 17,2022
होलिका दहन मुहूर्त (Holika Dahan Muhurta) – 18 बजकर 33 मिनट से 20 बजकर 58 मिनट तक
होली (Holi) वसंत ऋतु में फाल्गुन पूर्णिमा (Falgun Purnima) के दिन मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। दरअसल यह रंगों का त्योहार है। यह त्योहार पारंपरिक रूप से दो दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और दूसरे दिन रंग खेला जाता है। फाल्गुन के महीने में मनाई जाने वाली होली को फाल्गुनी के नाम से भी जाना जाता है। होलाष्टक से जुड़ी मान्यताएं भारत के कुछ हिस्सों में ही मानी जाती हैं। इन मान्यताओं का विचार पंजाब में सबसे अधिक दिखाई देता है। होली के रंगों की तरह होली मनाने के भी अलग-अलग तरीके हैं। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, उड़ीसा, गोवा आदि में होली को अलग-अलग तरीके से मनाने का चलन है। देश के जिन इलाकों में होलाष्टक से जुड़ी मान्यताएं नहीं मानी जाती हैं। उन सभी क्षेत्रों में होलाष्टक से होलिका दहन तक शुभ कार्य नहीं रुकते।
होलाष्टकी की पौराणिक मान्यता
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलिका दहन यानि पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। इस दिन से मौसम का मिजाज बदल जाता है। सर्दी अलविदा कहने लगती है और गर्मी आने लगती है। साथ ही वसंत के आगमन की खुशबू फूलों की महक के साथ प्रकृ्ति में बिखरने लगती है। होलाष्टक के संबंध में ऐसी मान्यता है कि जब भगवान श्री भोले नाथ ने क्रोध में आकर कामदेव को भस्म कर दिया तो उस दिन से होलाष्टक शुरू हो गया।
होलिका में गाय के गोबर से बने उपले की माला बनाई जाती है, उस माला में सात छोटे उपले होते हैं। रात के समय होलिका दहन के समय इस माला को होलिका के साथ जलाया जाता है। इसका उद्देश्य होली के साथ-साथ घर में रहने वाली बुरी नजर भी जल जाती है और घर में सुख-समृद्धि आने लगती है। लकड़ी और उपलों से बनी इस होलिका की विधिवत पूजा दोपहर से ही शुरू हो जाती है। इतना ही नहीं घरों में जो भी पकवान बनता है, उसे होलिका में चढ़ाया जाता है। शुभ मुहूर्त में शाम तक होलिका दहन किया जाता है। इस होलिका में नई फसल की गेहूं की बालियों और चने के झंगरी को भी भूना जाता है। और उसको खाया भी जाता है। होलिका दहन समाज में व्याप्त बुराइयों पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन को होली का पहला दिन भी कहा जाता है।
होली और होलिका से संबंधित लोकप्रिय किंवदंतियाँ
होली के त्योहार से जुड़ी कई कहानियां हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध है प्रह्लाद की कथा। प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक बहुत शक्तिशाली राक्षस था। वह अपने बल के अहंकार में स्वयं को भगवान मानने लगा। उसने अपने राज्य में भगवान का नाम लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद विष्णु का भक्त था। प्रह्लाद की भगवान की भक्ति से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को कई कठोर दंड दिए, लेकिन उसने कभी भी भगवान की भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जल सकती। हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए। आदेश का पालन किया गया, लेकिन आग में बैठने पर होलिका आग में जलकर राख हो गई, लेकिन प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ।
इसे नास्तिक पर, अधर्म पर आस्तिक की जीत के रूप में भी देखा जाता है। उस दिन से हर साल भगवान के भक्त प्रह्लाद की याद में होलिका जलाई जाती है।