प्रदेश हाईकोर्ट ने पंचायतों में लगे तकनीकी सहायकों को न्यूनतम वेतनमान देने के आदेश दिए हैं। इसके अलावा उनको राज्य सरकार की नीति के तहत नियमित करने के भी आदेश दिए हैं। याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार वर्ष 2005 में केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) बनाया था] जिसका मुख्य लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से कम से कम 100 दिन का गारंटीशुदा रोजगार उपलब्ध कराना था। प्रदेश सरकार ने 7 अप्रैल, 2008 को ग्राम पंचायत स्तर पर तकनीकी सहायकों को नियुक्त करने के लिए अधिसूचना जारी की। सरकार ने इनके लिए वेतन निर्धारण के नियम भी बनाए। नियमित तकनीकी सहायक को 10300-34800 और 3000 रुपए का ग्रेड पे एवं अनुबंध सहायकों को 5910 और सिर्फ 3000 रुपए के ग्रेड पे का प्रावधान किया गया था। राज्य सरकार ने 23 जुलाई, 2019 को तकनीकी सहायक के 1081 पद स्वीकृत करने का निर्णय लिया और वर्ष 2020 में 115 खाली पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू की गई। याचिकाकर्ताओं को इस चयन प्रक्रिया में अनुबंध आधार पर नियुक्त किया गया था। उनके नियुक्ति पत्र में भी उन्हें 8910 रुपए मासिक दिए जाने का निर्णय लिया गया था।
कोर्ट ने विभाग की ओर से जारी 17 दिसम्बर, 2021 के कमीशन आधार पर वेतन देने के आदेशों को निरस्त करते हुए यह निर्णय सुनाया। अदालत ने कहा कि विभाग ने इस निर्णय के तहत तकनीकी सहायकों को न्यूनतम वेतनमान से वंचित किया। विभाग ने जिला परिषदों को आदेश दिए थे कि तकनीकी सहायकों को सिर्फ कमीशन के आधार पर पारिश्रमिक दिया जाए। मोहित लट्ठ और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं में विभाग के वेतन न देने के निर्णय को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी। अदालत को बताया गया कि पहले तकनीकी सहायकों को 8910 रुपए का मासिक वेतन दिया जा रहा था लेकिन विभाग ने उसे बिना सोचे-समझे वापस ले लिया।