प्रदेश में हुए उपचुनाव में सत्ता में रहते हुए भाजपा को चारों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। परिणाम आने के बाद ही भाजपा में परदे के पीछे आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलने के साथ मंथन भी चल रहा है। हार की पूरी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने स्वयं लेने में देरी नहीं की। चुनाव प्रचार की कमान संभाले मुख्यमंत्री को यह जिम्मेदारी लेनी ही चाहिए थी। लेकिन संगठन से बड़ा कोई नहीं और मजबूत संगठन का दावा करने वाले संगठन के पदाधिकारी भी कटघरे में खड़े हैं। चुनाव प्रचार में सत्ता और संगठन दोनों तालमेल के साथ काम कर रहे थे। सत्ता में मुखिया मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर हैं तो संगठन के मुखिया सुरेश कश्यप हैं। वहीं संगठन में दो तीन दिग्गज नेता प्रधारी अविनाश राय खन्ना, सह प्रभारी टंडन और संगठन मंत्री पवन राणा हैं। जो संगठन की कार्यप्रणाली के साथ सत्ता के संचालन में भी परदे के पीछे हस्तक्षेप करते हैं। लेकिन अभी तक सार्वजनिक तौर पर संगठन के किसी भी नेता ने जिम्मेदारी नहीं ली। हालांकि सत्ता से अधिक संगठन नेताओं की अधिक जिम्मेदारी बनती है। हार के बाद मंत्रीमंडल में फेरबदल की चर्चा हरतरफ है लेकिन संगठन में बदलाव की चर्चा नहीं हो पा रही है। लेकिन यह तय है कि पार्टी हाईकमान प्रभारियों के साथ पदाधिकारियों को भी बदलेगा। अभी भाजपा का कोर ग्रुप भी हार पर मंथन करेगा। मंथन में सत्ता के साथ संगठन की कमियों पर भी चर्चा होगी। उपचुनाव में तीनों विधानसभा क्षेत्रों जुब्बल कोटखाई, अर्की व फतेहपुर में हार का कारण पार्टी नेताओं की बगावत व भीतरघात को भी माना जा रहा है। आखिर क्यों संगठन के प्रभारी व पदाधिकारी अपनों को मनाने और बगावत को रोकने में कामयाब नहीं रहे।
उपचुनाव में प्रचार की कमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने संभाली रही। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के अलावा भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप, प्रभारी अविनाश राय खन्ना, संगठन मंत्री पवन राणा भी पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ प्रचार में जुटे रहे। चुनावों में भाजपा के खिलाफ हवा जुब्बल कोटखाई से चली जो पूरे प्रदेश में फैली। जुब्बल कोटखाई के परिणामों में भाजपा प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई। जुब्बल में साबित भी हुआ कि वहां भाजपा का संगठन नहीं था, स्वर्गीय नरेंद्र बरागटा का संगठन था, जो चेतन बरागटा की बगावत के साथ उसी के साथ चला गया। भाजपा को प्रचार के लिए कार्यकर्ता ही नहीं मिले। प्रत्याशी के प्रचार के लिए शिमला से मंत्री व कार्यकर्ता जाते रहे, जिससे जमानत भी जब्त हो गई। ऐसा ही हाल फतेहपुर व अर्की में देखने को मिला, जहां पार्टी के कार्यकर्ता ही परदे के पीछे विरोध करते रहे। फतेहपुर में कृपाल परमार व उनके समर्थकों ने खुलकर प्रचार नहीं किया तो अर्की में पूर्व विधायक गोविंद शर्मा, कर्मचारी नेता सुरेंद्र ठाकुर सहित उनके समर्थकों ने भाजपा प्रत्याशियों के लिए प्रचार में नहीं उतरे। जिससे यह कहा जा सकता है कि अर्की व फतेहपुर में भी भाजपा को अपने ही नेताओं से भीतरघात का सामना करना पड़ा। संगठन का कार्य है कि वह अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को अनुशासन में रखे। जब पार्टी सत्ता में हो तो कार्यकर्ताओं की कहीं अनदेखी न हो, इसका काम भी संगठन के नेताओं का है। लेकिन अपनी भूमिका निभाने में संगठन कितना कामयाब रहा, इस पर सवाल है। इसी के साथ मंडी संसदीय क्षेत्र की बात करें तो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिले मंडी में भाजपा आगे रही है। संसदीय क्षेत्र में आने वाली मंडी जिले के 9 विधानसभा क्षेत्रों में से 8 में भाजपा को लीड मिली है। मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र सराज में भाजपा को ऐतिहासिक लीड मिली है। लेकिन मंडी जिले से बाहर कुल्लू, लाहौल, किन्नौर, रामपुर व भरमौर में भाजपा पिछड़ गई, जिससे मंडी संसदीय क्षेत्र में ही हार का सामना करना पड़ा।
अब हार पर भाजपा का कोर ग्रुप 24 से 26 नवंवर को मंथन करने के लिए एकजुट हो रहा है। कोर ग्रुप के मंथन में हार का कारण सामने आएंगे। यह तय है कि हार पर मंथन में सरकार के साथ संगठन की कमियों पर भी मंथन होगा। कोर ग्रुप के मंथन के बाद बनने वाली रिपोर्ट हाईकमान को जाएगी। भाजपा मिशन रिपीट का अभियान छेड़ा है तो यह तय है कि मिशन रिपीट के लिए मंत्रीमंडल के साथ संगठन में भी बदलाव होगा।