हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र पांगी में आज भी प्राचीन परंपराएं जिंदा हैं। दुर्गम क्षेत्र पांगी के लोग एक माह तक जुकारू पर्व मनाते हैं। 75 वर्षीय बृज लाल पुत्र शंकु राम निवासी पुंटों, 70 वर्षीय चरणीदासी पत्नी मोहल लाल निवासी पुंटों ने बताया कि सदियों से पांगी में यह उत्सव मनाया जा रहा है। पर्व में परंपराओं और रीति रिवाजों का पालन किया जाता है। शनिवार को मान्यता के अनुसार लोगों ने आटे के बकरे बना कर खेतों में हल चलाए। इससे पूर्व खेतों में पत्थर की शिला की विधिविधान से पूजा-अर्चना कर गेहूं की बिजाई की। मान्यता है कि 20 दिन के बाद अंकुरित होने वाले गेहूं के आधार पर ही पता चलेगा कि यह वर्ष फसल के लहजे से धन्य-धान्य रहेगा या सूखे की स्थिति उत्पन्न होगी।
अगर निर्धारित समय में फसल अंकुरित हो जाती है तो इसे अच्छी पैदावार का प्रतीक माना जाता है। अगर ऐसा नहीं होता है तो इसे सूखे की स्थिति बताया जाता है। अल सुबह से ही पांगी के बाशिंदे जुकारू पर्व के तहत आटे के बकरे बना कर खेतों में हल चलाते दिखे। इस पर्व के दौरान प्रतिदिन क्रमवार लोगों के घरों में धाम का आयोजन होता है। जहां लोग एक-दूसरे के घरों में जाकर विभिन्न पकवानों का आनंद उठाते हैं। भोज के दौरान सतु, चटनी, घी, शहद, काजू, बादाम का सेवन करते हैं। इसके अलावा अब कई लोग भोज में मटर-पनीर, चिकन, मटन भी बनाते हैं। बताया कि जुकारू पर्व पांगी के रीति रिवाजों और संस्कृति के बखान का प्रतीत है।