राष्ट्रीय लघु जलविद्युत नीति के प्रारूप पर परामर्श के लिए विशेष कार्यशाला आयोजित

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राष्ट्रीय लघु जलविद्युत नीति, 2024 के मसौदे पर विचार-विमर्श के लिए आज यहां हितधारकों की एक विशेष परामर्श बैठक आयोजित की गई। यह नीति भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा प्रस्तावित की गई है और इसकी अध्यक्षता केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव भूपिंदर एस. भल्ला ने मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना के साथ की।
इस अवसर भूपिंदर भल्ला ने कहा कि यह प्रारंभिक बैठक बाधाओं पर चर्चा करने और स्वतंत्र बिजली उत्पादकों (आईपीपी), वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के प्रतिनिधियों, डेवलपर्स एसोसिएशन और वित्तीय संस्थानों के बीच लघु पनबिजली परियोजनाओं की स्थापना के लिए विचार-विमर्श करने के लिए आयोजित की गई। इस दौरान देश में 5 मेगावाट से 25 मेगावाट क्षमता तक की जलविद्युत परियोजनाओं को स्थापित करने पर चर्चा की गई।
उन्होंने कहा कि एमएनआरई गैर-जीवाश्म स्रोतों से 500 गीगावाट स्थापित विद्युत क्षमता प्राप्त करने की दिशा में काम कर रहा है। मार्च 2004 तक देश में अब तक कुल 201.8 गीगावाट गैर-जीवाश्म क्षमता स्थापित की जा चुकी है। हालांकि सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा को अतिरिक्त प्राथमिकता प्रदान की जा रही है, फिर भी स्माल हाइड्रो प्लांट (एसएचपी) की स्थापित क्षमता और क्षमता दोनों में एशिया अग्रणी है। उन्होंने कहा कि नीति को अंतिम रूप देने से पहले हितधारकों की राय लेना उचित है ताकि स्वतंत्र ऊर्जा उत्पादकों की जरूरतों पर विचार किया जा सके और उन्हें पूरा किया जा सके।
उन्होंने आश्वासन दिया कि एमएनआरई लघु हाइड्रो प्लांट को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार को केंद्रीय वित्तीय सहायता के रूप में प्रोत्साहन प्रदान करने पर विचार करेगा क्योंकि उपलब्ध क्षमता का जल्द से जल्द दोहन करने की आवश्यकता है।  
मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने कहा कि राज्य ने जल विद्युत उत्पादन में उल्लेखनीय प्रगति की है। लघु हाइड्रो प्लांट को बढ़ावा देने की जरूरत है। 10 मेगावाट तक के एसएचपी को जलग्रहण क्षेत्र उपचार योजना से छूट दी गई है और इसलिए जल विद्युत उत्पादन को बढ़ाने के लिए इस छूट को 25 मेगावाट तक बढ़ाया जाना चाहिए, जिससे राज्य के विकास में योगदान मिलेगा।  
श्री सक्सेना ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में हमने एसएचपी को सफलतापूर्वक संचालित किया है, जिसने लोगों की ऊर्जा मांगों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एसएचपी की अब तक चिन्हित क्षमता 3850 मेगावाट है और राज्य ने 2950 मेगावाट क्षमता के 880 एसएचपी आवंटित किए हैं। इनमें से 783 मेगावाट की संयुक्त क्षमता वाली 150 परियोजनाएं सफलतापूर्वक चालू हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त, 120 मेगावाट क्षमता वाली 43 परियोजनाएं निर्माणाधीन थीं, जबकि 1005 मेगावाट की कुल 189 परियोजनाएं मंजूरी के विभिन्न चरणों में हैं।

मुख्य सचिव ने कहा कि बैंक और वित्तीय संस्थान जलविद्युत परियोजनाओं को वित्तपोषित करने में झिझक रहे हैं इसलिए प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (पीएसएल) दिशा-निर्देशों के तहत एसएचपी को शामिल करने पर विचार करना अनिवार्य है।
उन्होंने कंेद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) को बहाल करने का भी आग्रह किया जो न केवल डेवलपर्स पर वित्तीय बोझ को कम करेगा बल्कि कई रुकी हुई परियोजनाओं को शुरू करने और पूरा करने को भी प्रोत्साहित करेगा। यह समर्थन विकास की गति को तेज करने, नवाचार को बढ़ावा देने और नवीकरणीय गैर-जीवाश्म स्रोतों में आर्थिक विकास को गति देने में सहायक होगा।
उन्होंने वन स्वीकृतियों में मंजूरी प्राप्त करने में बिलंब के कारण परियोजनाओं की स्थापना में देरी पर चिंता जताई और एमएनआरई से पर्यावरण और वन विभाग, भारत सरकार के साथ मुद्दों में तेजी लाने की वकालत करने का आग्रह किया।  
आईआईटी रूड़की के प्रोफेसर अरुण कुमार ने एक विस्तृत प्रस्तुति दी और विभिन्न अग्रिम प्रीमियम, तकनीकी और वित्तीय चुनौतियों, ट्रांसमिशन, मंजूरी और अनुमोदन जैसी विभिन्न चुनौतियों पर हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करने के अलावा, अपने विशेषज्ञ विचारों के साथ परामर्श का सारांश भी दिया। लघु जलविद्युत नीति के मसौदे में शामिल किए जाने वाले प्रत्येक तकनीकी मुद्दों और सुझावों को एमएनआरई को भेजा जाएगा।

इससे पहले, फेडरेशन ऑफ स्माल हाइड्रो के अध्यक्ष अरुण शर्मा ने लघु हाइड्रो पावर उत्पादकों की शिकायतों को दूर करने के लिए एक मजबूत नीति पर जोर देते हुए प्राथमिकता के आधार पर उठाए जाने वाले विभिन्न मुद्दों के बारे में विस्तार से बताया।
एमएनआरई की सलाहकार और वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. संगीता एम. कस्तूरे ने कार्यशाला के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
परामर्श बैठक के दौरान अरुणाचल प्रदेश, केरल, मध्य प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, ओडिशा, आंध्र प्रदेश व त्रिपुरा की राज्य सरकारों और आईपीपी के प्रतिनिधियों ने भी विचार-विमर्श किया और अपने बहुमूल्य सुझाव दिए।
प्रबंध निदेशक, एचपीएसईबीएल हरिकेश मीना, निदेशक, हिमऊर्जा शुभकरण सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक, एमएनआरई एस के साही भी कार्यशाला में शामिल हुए।


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