56 साल बर्फ में दबे रहे फौजियों को अब नसीब होगी गाँव की मिट्टी………..

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7 फरवरी 1968… AN-12 विमान ने चंडीगढ़ से लेह के लिए उड़ान भरी थी, लेकिन कुछ देर बाद ही वो लापता हो गया था. भारतीय वायुसेना का ये विमान रोहतांग पास में हादसे का शिकार हुआ था. प्लेन में 102 लोग सवार थे. इसका मलबा साल 2003 में मिला था. अब सेना ने हिमाचल प्रदेश में दुर्घटनास्थल से चार शव बरामद किए हैं जिनमें से एक शव है वायु सेना के जवान मल्खान सिंह का जो 56 साल बाद अपने घर वापस आएगा.

मौत… और उसके बाद का सफर…समझदारों की मानें तो हर इंसान एक बार तो ये जरूर सोचता है कि उसकी मौत कैसी होगी… शायद जिंदगी जीने का ये तरीका है कि आप हर पल ये सोचकर जीएं कि जिस दिन आप इस दुनिया से जाएंगे उस दिन लोग आपको किस तरीके से याद करेंगे, लेकिन एक जवान को ऐसा सोचने की जरूरत नहीं पड़ती. क्योंकि जिस पल वो देश के लिए वर्दी पहनता है, तन पर तो खाकी सजाता है मगर मन में तिरंगे के रंगों को समा लेता है और फिर उसी में लिपटकर मौत के आगोश में जाना चाहता है. एक शहीद की मौत से ज्यादा गर्व की मौत किसी इंसान की हो ही नहीं सकती. सर्द हवाओं के बीच… भीषण गर्मी में तपती रेत पर… ये जवान सीना तानकर देश की रक्षा करते हैं और फिर उसी धरती की रक्षा करते कई बार वहीं शहीद हो जाते हैं. इससे ज्यादा खूबसूरत बात क्या हो सकती है कि एक जवान को धरती मां अपने आगोश में ले लेती हैं… जब वो थक जाता है तो उसे अपनी गोद में शरण देकर उसे थपकियां देकर सुला देती हैं… ये मौत सबको नसीब नहीं होती… कुछ ऐसी ही शहादत की कहानी है वायु सेना के जवान मल्खान सिंह की…

7 फरवरी 1968… AN-12 विमान ने चंडीगढ़ से लेह के लिए उड़ान भरी थी, लेकिन कुछ देर बाद ही वो लापता हो गया था. 56 साल पहले यानी 1968 में भारतीय वायुसेना का ये विमान रोहतांग पास में हादसे का शिकार हुआ था. प्लेन में 102 लोग सवार थे. इसका मलबा साल 2003 में मिला था. रोहतांग पास में खराब मौसम का सामना करने के बाद विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और दशकों तक पीड़ितों के शव और अवशेष बर्फीले इलाके में पड़े रहे. हादसे में कोई नहीं बचा.

देश का सबसे लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन

इस बीच डोगरा स्काउट्स के नेतृत्व में भारतीय सेना का खोज और बचाव अभियान जारी रहा. इसे देश का सबसे लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन कहा जाता है और अब इसमें भारतीय सेना को बड़ी सफलता हाथ लगी है. सेना ने हिमाचल प्रदेश में दुर्घटनास्थल से चार शव बरामद किए जिनमें से एक शव था वायु सेना के जवान मल्खान सिंह का. अब 56 साल बाद जवान का शव उनके घर वापस लौटा… लेकिन उनकी राह तकने वाली माता-पिता की आखें तो बेटे के दीदार के पहले ही बंद हो गई हैं.

56 साल… 4 शव और लंबा इंतजार

नानौता के गांव फतेहपुर निवासी वायु सैना में तैनात जवान मल्खान सिंह देश की रक्षा करते हुए 7 फरवरी 1968 में हिमाचल प्रदेश के रोहतांग पास में शहीद हो गए थे. अटल सरकार के कार्यकाल से 2003 में सेना ने रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया और 2019 तक 5 शव बरामद किए. अभी हाल ही में कुछ समय पहले सेना को 4 शव और मिले तो एक फौजी की पहचान नानौता थाने के ग्राम फतेहपुर निवासी मलखान सिंह के रूप में होना बताई गई. मल्खान सिंह शादीशुदा थे और उनके एक बेटा रामप्रसाद था जिसकी मौत हो चुकी है. उनके पोते गौतम और मनीष मजदूरी करते हैं. सोमवार को जब यह खबर सेना के सूत्रों से परिवार के लोगों और ग्रामीणों को मिली तो पूरे गांव का माहौल गमगीन हो गया. साथ ही इस बात का संतोष भी हुआ की जिस मल्खान सिंह के शव को ढूंढने में 56 साल लग गए आखिरकार उनके शव को ढूंढ लिया गया और अब परिजन पितृपक्ष में अपने पितृ को सच्ची मुक्ति दे पाएंगे.

कब पहुंचेगा पार्थिव शरीर

बताया जा रहा है की शहीद मल्खान सिंह का पार्थिव शरीर 56 साल बाद कल यानी 2 अक्टूबर या फिर 3 अक्टूबर को फतेहपुर गांव में पहुंचेगा. उनके छोटे भाई ईसम पाल ने जानकारी देते हुए बताया कि परिजनों ही मल्खान सिंह का अंतिम संस्कार किया जाएगा. जिस पल परिवार को मल्खान के पार्थिव शरीर की घर वापसी की जानकारी मिली तो हर कोई स्तब्ध रह गया. वो बच्चे जो अपने दादा-परदादा की कहानी सुनकर बड़े हुए उन्हें अब उनके दर्शन करने और आखिरी सफर में शामिल होने का मौका मिलेगा.

घर में बचे केवल पोते…

बचपन में अपनी मां और पिता से दादा के जहाज के कहीं गुम हो जाने की कहानी सुनने वाले मल्खान सिंह के बड़े पोते बताते हैं की उनकी मां इंद्रो देवी और पिता राम प्रसाद अक्सर उन्हें दादा मल्खान सिंह के जहाज के अचानक आसमान और बर्फीली पहाड़ियों में गुम हो जाने की कहानियां सुनाया करते थे. गौतम और मनीष अक्सर यही सोचते थे की उनके दादा मल्खान सिंह एक ना एक दिन वापिस जरूर आएंगे. गौतम के माता-पिता भी पिता की खोज खबर का इंतजार करते-करते दुनिया से चल बसे. मां-बाप के जाने के बाद गौतम और मनीष भी शहर में आकर बस गए. मल्खान सिंह के लापता होने के बाद परिवार को कोई मदद नहीं मिली, जिसके बाद मलखान के दोनों पोते शहर आ गए और मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन यापन करने लगे.

सही मायने में मिलेगा तर्पण

आज जैसे ही मल्खान के पोते और बाकी परिजनों को ये पता चला की मल्खान सिंह का पार्थिव शव बरामद हो गया है तो वो ना खुश हो सके और ना गमगीन हो सके, लेकिन परिवार के लोगों को इस बात की संतोष है की कम से कम उन्हें अपने बहादुर दादा शहीद मल्खान सिंह का अंतिम संस्कार करने का मौका मिलेगा. मल्खान सिंह के पोते बताते हैं की एक सर्च ऑपरेशन के दौरान रेस्क्यू टीम को बर्फीली घाटियों में चार शव मिले जिसमें से एक शव के साथ मिली कमर बेल्ट पर मलखान सिंह का नंबर और नाम मिला जिससे उनकी पहचान हुई.

गौतम का कहना है की सेना के नियम के अनुसार आगे की कार्रवाई चल रही है और अगले एक दो दीन तक मलखान सिंह का शव उनके गांव पहुंचेगा जिसके बाद उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. इस बात का केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है कि मल्खान के परिवार को कैसा लग रहा होगा. वो आंखें जो मल्खान की याद में आसुओं के साथ तड़पकर बंद हो गईं… आज कहीं ना कहीं उनको भी सही मायने में तर्पण मिलेगा.


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