काश हो जाए पूरी हर उम्मीद यहां,नहीं इश्क़ तो फिर इनायत ही सही।
मोहब्बत नहीं तो बगावत ही सही,तेरे वास्ते यार अदावत ही सही।
बहुत बनाए हैं महलों के मलबे यहां,इस बार तो कोई इमारत ही सही।
खत्म हुआ दुश्मनी का रिश्ता ही,अब तो तेरे साथ सख़ावत ही सही।
हम भी चलेंगे कोई चाल नई सी,उनके हाथों में महारत ही सही।
क़लम उठाई है रूह ए अल्फ़ाज़ ने,तुम्हारे लिए अब ग़ज़ल ही सही।।