बेरोजगार युवाओं को कौशल विकास की ट्रेनिंग देने के नाम पर जमकर फर्जीवाड़ा चल रहा है। राज्य शासन को धोखे में रखकर संस्थाओं ने अपना पंजीयन करा लिया है। उनके यहां न तो संसाधन है और न ही पर्याप्त कमरे। प्रशिक्षार्थी भी 10 से 20 प्रतिशत ही आ रहे हैं, जबकि पूर्व में दो से तीन बैच को प्रशिक्षण देने के नाम पर शासन से लाखों रुपए का भुगतान प्राप्त कर लिया गया है।
राज्य शासन ने बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए कौशल विकास योजना लागू की है। इसके तहत युवाओं को मुफ्त में कंप्यूटर हार्डवेयर, इलेक्ट्रिकल, इंग्लिश स्पीकिंग, इलेक्ट्रिशियन डोमेस्टिक, कंप्यूटर एप्लीकेशन का प्रशिक्षण देना है। शासन द्वारा बनाए गए नियम की बात करें तो एक बैच के लिए कम से कम दो कमरे चाहिए। इसमें एक कमरे में थ्योरी की पढ़ाई और दूसरे कमरे में प्रैक्टिकल के सारे संसाधन मौजूद होने चाहिए, लेकिन जिले की कई संस्थाओं ने मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के तहत बेरोजगारों को ट्रेनिंग देने के लिए पंजीयन कराते समय शासन को धोखे में रखा है। इनका फर्जीवाड़ा अब खुलकर सामने लगा है। कई संस्थाओं ने 6 से 9 बैच का पंजीयन कराया है, लेकिन इनके पास ट्रेनिंग देने के लिए तीन से चार कमरे ही हैं। ज्यादातर संस्थाओं ने पूर्व में दो से तीन बैच को ट्रेनिंग देने का प्रमाण पत्र भी पेश कर दिया।
मामले के अनुसार हिमकॉन ने कुल्लू के निरमंड, मंडी के करसोग व पधर और शिमला के नेरवा में वर्ष 2013 से 2014 तक फल प्रसंस्करण प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर सात लाख रुपए खर्च किए थे. इन कार्यक्रमों के अंतर्गत प्रत्येक प्रशिक्षण स्थल पर 25 प्रतिभागियों को प्रशिक्षण दिया गया था. इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम लिमिटेड ने सात लाख रुपए की राशि मंजूर की थी. डीजीपी संजय कुंडू ने बुधवार को बताया कि विजिलेंस पुलिस स्टेशन शिमला में धारा 420, 467, 468, 471 और 120 बी आईपीसी के तहत मामला दर्ज कर कार्रवाई अमल में लाई जा रही है.