मो नमो दुर्गे सुख करनी ।नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।तिहूँ लोक फैली उजियारी
शशि ललाट मुख महाविशाला नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
रूप मातु को अधिक सुहावे ।दरश करत जन अति सुख पावे ॥ ४
तुम संसार शक्ति लै कीना ।पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी ।तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ ८
रूप सरस्वती को तुम धारा ।दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ।परगट भई फाड़कर खम्बा ॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।श्री नारायण अंग समाहीं ॥ १२
क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।महिमा अमित न जात बखानी ॥
मातंगी अरु धूमावति माता ।भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी ।छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ १६
केहरि वाहन सोह भवानी ।लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै ।जाको देख काल डर भाजै ॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत ।तिहुँलोक में डंका बाजत ॥ २०
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।रक्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी ।जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रूप कराल कालिका धारा ।सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ।भई सहाय मातु तुम तब तब ॥ २४
अमरपुरी अरु बासव लोका ।तब महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥ २८
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो ।काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
शक्ति रूप का मरम न पायो ।शक्ति गई तब मन पछितायो ॥ ३२
शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो ।तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतावें ।मोह मदादिक सब बिनशावें ॥ ३६
शत्रु नाश कीजै महारानी ।सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥करो कृपा हे मातु दयाला ।
ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
सब सुख भोग परमपद पावै ॥ ४०देवीदास शरण निज जानी ।
कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥
॥दोहा॥
शरणागत रक्षा करे,
भक्त रहे नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में,
मातु लिजिये अंक ॥