नाम बदलना था तो पहले बदलते प्रदेश के लाखों लोगों का भला होता
कांग्रेसी नेताओं ने जनमंच के ऐसे-ऐसे नाम रखें जिए सभ्य समाज में बोला नहीं जा सकता है।
शिमला: पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि सुक्खू सरकार ने राजनीतिक दुर्भावना के चलते जनमंच कार्यक्रम को बंद कर दिया था। जिसे वह अब फिर से शुरू कर रही है। नाम बदलकर काम शुरू करना था तो सत्ता में आते ही नाम बदल देते और जनमंच को चलने देते। हिमाचल जैसे कठिन भौगोलिक परिस्थिति वाले प्रदेश में जनमंच अपने आप में एक अनूठा कार्यक्रम था। जिसके तहत सरकार पूरे प्रशासनिक अमले के साथ लोगों के घर-द्वार तक पहुंचती थी और उनकी समस्याओं का मौके पर ही समाधान करती थी। छोटे-बड़े मामले जिसके लिए आम आदमी को कई घंटों और सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था, वह काम घर बैठे ही बिना किसी खर्च के आराम से हो जाता था। सरकार का यही काम है कि आम आदमी के हितों को ध्यान में रखते हुए उनकी सुविधाओं आसानी से उन तक पहुँचाए। लेकिन वर्तमान सरकार मैं ऐसा कोई मेकनिजम ही नहीं है जिससे लोग अपनी बात प्रभावशाली तरीके से सरकार तक पहुंचा सकें। मंत्री से लेकर विधायक, हिमाचल के लोग आज ऐसी स्थिति में है जहाँ उनकी कोई सुनवाई नहीं है। मुख्यमंत्री को जनमंच कार्यक्रम को राजनैतिक विद्वेष के चलते बंद करने के लिए हिमाचल के लोगों से माफी मांगनी चाहिए।
पूर्व की भाजपा सरकार द्वारा शुरू किए गए जनमंच से जैसे कार्यक्रम ने आम जनता तक सरकार की पहुँच बहुत आसान कर दी। हजारों की संख्या में लोगों की शिकायतों का एक दिन में निस्तारण हुआ। लेकिन सत्ता में आते ही सुक्खू सरकार ने जनमंच को अपनी राजनीतिक दुर्भावना का शिकार बनाया। उसके ऐसे-ऐसे नामकरण किए गए जिन्हें सभ्य समाज में कहना भी संभव नहीं है। आज 2 साल के बाद वही कर रही है, जो उसे सत्ता में आते ही करना था। सरकार की राजनीतिक दुर्भावना के चलते प्रदेश के लाखों लोगों को अपनी बात कहने का अवसर नहीं मिला। लोगों को अपनी शिकायतों का समाधान नहीं मिला। जनमंच जैसी सुविधाएं न होने की वजह से लोग अपनी परेशानियां किसी से कह नहीं पाए। अगर सरकार राजनैतिक दुर्भावना से प्रेरित होकर जनमंच बंद नहीं करती तो प्रदेश के लाखों लोगों का भला होता।
जयराम ठाकुर ने कहा कि जिस प्रकार की राजनीतिक दुर्भावना के साथ कांग्रेस की सुक्खू सरकार काम कर रही है, वह एक ओछी राजनीति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। पूर्व सरकार द्वारा शुरू किए गए जनमंच के 256 कार्यक्रमों से 50,000 शिकायतों का मौके पर निस्तारण किया गया था। इससे हर शिकायतकर्ता के हजारों रुपए बचे थे। जो उन्हें यात्रा में कागज़ी कार्रवाई में खर्च करने पड़ते। क्या जी किसी भी कल्याणकारी राज्य का यही काम होता है कि वह प्रदेश के लोगों की हितों का ध्यान रखें और लोगों को सुविधाएँ प्राप्त करने में किसी भी प्रकार की असुविधा न हो। लेकिन वर्तमान सरकार के लिये राजनीतिक हित सर्वोपरि है जनहित नहीं। इसी कारण जन मंच जैसी महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को सरकार ने अपनी ओछी राजनीति का शिकार बनाते हुए बंद किया और उसके बारे में ना जाने कितनी गलत और अपमानजनक बातें की।