वीरभद्र सिंह को पहाड़ की संस्कृति और देवी-देवताओं में थी अटूट आस्था

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वीरभद्र सिंह को पहाड़ की संस्कृति और देवी-देवताओं में थी अटूट आस्था-देवताओं के नजराने और बजंतरियों के पारिश्रमिक को किया था शुरू
मंडी: पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पंचतत्व मैं विलीन हो गए मगर उनकी पहाड़ के देवी देवताओं वह पहाड़ की संस्कृति में अटूट आस्था थी । प्रदेश के विकास के नए आयाम स्थापित करने के साथ-साथ यहां की सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किए। वीरभद्र सिंह पहाड़ की सांस्कृतिक पहचान को कायम रखना चाहते थे और इस दिशा में उनके प्रयास निरंतर जारी भी रहे। उनकी पहाड़ की संस्कृति और यहां के देवी-देवताओं में अटूट आस्था थी। उन्होंने प्रदेश के हर जिला में आयोजित होने वाले मेलों को जिला, राज्य,राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर का दर्जा प्रदान कर यहां की लोक संस्कृति को मंच प्रदान किया। हजारों लोक कलाकारों को साल भर के लिए रोजगार के अवसर मुहैया करवाए। हिमाचल प्रदेश में मंडी की अंतर्राष्ट्रीय मंडी शिवरात्रि से मेलों का सिलसिला शुरू होता है जो कुल्लू के अंतर्राष्ट्रीय दशहरा उत्सव तक जारी रहता है। इन मेलों में मंडी की शिवरात्रि और कुल्लू दशहरा दो ऐसे उत्सव हैं जिनमें सैंकड़ों की संख्या में देवी देवता शिरकत करते हैं। वीरभद्र सिंह जो स्वयं भी माता भीमाकाली के उपासक रहे, देव परंपराओं के निर्वहन करने वाले इन मेलों में शिरकत करते और लोगों को देव परंपराओं के संरक्षण केलिए प्रेरित करते। वीरभद्र सिंह ने मंडी की शिवरात्रि और कुल्लू दशहरा में आने वाले देवी-देवताओं के नजराने में समय-समय पर न केवल वृद्धि की। बल्कि मंडी और कुल्लू में हुए बजंतरियों के आंदोलन की आवाज को समझते हुए दोनों ही मेलों में आने वाले देवताओं के बजंतरियों के लिए पारिश्रमिक देने की पहल की। उसी प्रकार साल भर होने वाले मेलों के आयोजन से प्रदेश के लोक कलाकारों को मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है। जिससे उन्हें साल भर रोजगार मिलता रहता है। अभी लॉकडाउन के चलते मेलों के आयोजन न होने से प्रदेश के लोककलाकारों के समक्ष आर्थिक संकट आन खड़ा हुआ है।     वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य की अलग पहचान को कायम रखना चाहते थे। वे अपने भाषणों में कई बार इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि हिमाचल प्रदेश का गठन यहां की अलग भौगोलिक परिस्थितियों, बोलियों, रहन-सहन के चलते हुआ है। जबकि इससे पहले हम महापंजाब का हिस्सा थे, डा. परमार के प्रयासों हिमाचल पंजाब से अलग हुआ और स्व.प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूर्ण राज्यत्व का दर्जा प्रदान किया। जिसकी स्वर्ण जयंति हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष मनाई जा रही है। वीरभद्र सिंह ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं जो प्रदेश की संस्कृति, साहित्य, लोककलाओं और देवपरंपराओं के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में निरंतर प्रयास करते रहें हैं। यही कारण है कि आज हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान राष्ट्रीय ही नहीं अपितू अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कायम है। सर्व देवता सेवा समिति के अध्यक्ष शिवपाल शर्मा का कहना है कि वीरभद्र सिंह के निधन से हिमाचल प्रदेश ने एक महान विभूति को खोया है। इन्होंने हमेशा देवी-देवताओं को आदर सम्मान दिया और देवी-देवताओं को देखते हुए मंडी में देव सदन का शिलान्यास किया और एक मुश्त लगभग साढ़े सात करोड़ रुपए की राशि कार्य करने के लिए लोक निर्माण विभाग को स्वीकृत की। उसी प्रकार अन्य देवी-देवताओं के कार्य जैसे देव ध्वनि और देव संस्कृति को संजो कर रखने के लिए प्रेरित करते रहते थे।

मंडी शिवरात्रि के दौरान आयोजित देव ध्वनि के अवसर पर श्रद्धापूर्वक हाथ जोड़ते हुए एवं शिवरात्रि की जलेब में परंपरागत पगड़ी पहनकर लोगों का अभिवादन स्वीकारते हुए।

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